मानवता की बदलती परिभाषा

हाल ही में कुछ दिनों पहले हम सभी ने देखा की सोशल मीडिया में सीरिया में हुए कत्लेआम को लेकर लोगों में बहुत गुस्सा देखा गया जो भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व में व्यापत था।अब हम आते हैं उस मूल घटना पर कि आखिर वहाँ ये सब क्या चल रहा है। सीरिया में सरकार और विद्रोहीयों के बीच पिछले कुछ वर्षों से गृह युद्ध चल रहा है जिसका फायदा उठाया वहाँ पनप रहे इस्लामिक कट्टरपंथीयों ने।।।इन कट्टरपंथियों ने वहाँ जेहाद का नारा दे कर उसे ISIS का गढ़ बना दिया। फिर शुरू हुआ भयानक ,डरावना और नृसंस हत्या का लगातार न मिटने वाला सिलसिला। जब अमेरिका और रुस ने वहाँ हस्ताक्षेप किया तो कुछ पल के लिए लगा कि शायद अब यह सिलसिला थम जायेगा,पर हुआ इसके बिल्कुल विपरीत। दोनों देशों ने वहाँ हस्ताक्षेप ,वहाँ हो रही हत्याओं को रोकने के लिए नहीं किया था बल्कि अपने निहित स्वार्थ के लिए किया था।
जिसका नतीजा यह हुआ कि आज भी हम वहाँ छोटे- छोटे मासूम बच्चे,गर्भवती महिलाएं एवं अनेक युवक और युवतियों की मानवता को शर्मसार कर देने वाली नृशंस हत्यायें देखने को मिल रही हैं। ।।
आज से कुछ हफ्तों पहले फेसबुक और व्हाटशप पर सीरिया में हुए नरसंहार पर लोगों ने स्टेटस और इमोजी के जरीये भयंकर रोष प्रकट किया था। हद तो तब हो गयी जब बहुत सारे लोगों ने बिना जाने समझे आज से करीब तीन से चार साल पहले की फोटो को भी डाल कर करुणा प्रकट कर रहे थे।
दूसरा दृश्य शुरु होता है आज से कुछ दिन पहले का जब इराक से 39 भारतीय लोगों का कत्लेआम कर के दफना दिया गया था ।भारत सरकार के अथक प्रयासों से हमें अब उन 39 भारतीयों के मारे जाने की खबर मिली है जो की पूरे भारत को हिला कर रख दिया है ।
मेरी निगाहें आज भी उस फेसबुक और व्हाटशप गैंग की बाट जोह रही है,हो सकता है कि अब वो ना आये ।वो नहीं आयेंगे क्योकी वे लोग जाने या अनजाने में किसी खास मुहीम का हिस्सा बन कर रह जाते है।मुझे उन लोगों की मानवता पर रत्ती भर भी शक ना होता अगर ये लोग इस सामूहिक नरसंहार पर भी थोड़ा पिघलते।
ये भी हो सकता है कि शायद देश के अन्दर रह रहे उन लोगों को देश में हो रहे अमानवीय कृत्य ना दिखे ।हम आपके मानवता पर प्रश्न उठाने के काबिल नहीं होते
यदि आप दोनों घटनाओं को समान दृष्टि से देखने की कोशिश करते लेकिन आप की मानवता तो कुछ घटनाओं पर जग जाती हैं और कुछ पर चीर निद्रा में चली जाती है। और यदि आप भी इस बिमारी से ग्रसित है तो मैं आपकी इसे मानवता नहीं मानता बल्कि ऐ फेसबुक और व्हाटशप के उस ट्रेंड का महज हिस्सा है।
हम सब लोगों को आज सच्चा मानवतावादी बनने की जरूरत है और इस मानवतावाद की बदलती परिभाषा को पुनः बदलना है।
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सौरव पाण्डेय

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